पशु आहार में खनिज लवणों का महत्व
पशुओं के आहार में सभी तत्वों की उचित मात्रा का होना उनके स्वास्थ्य व उत्पादन में विशेष योगदान देता है। ये सभी तत्व शरीर की विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। पशुओं के आहार में कार्बोहाइड्रेट. बसा, प्रोटीन, विटामिन के साथ साथ खनिज लवणों का अतिविशेष महत्त्व होता है। खनिज लवण मुख्यतः दांतों व हड्डियों की रचना के मुख्य भाग हैं। है शरीर के विभिन्न एंजाइम को क्रियाशील बनाने में तथा विटामिनों के निर्माण में काम आकर शरीर की अनेक महत्वपूर्ण क्रियाओं में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं। इनकी कमी से शरीर में कई प्रकार की बीमारियों जैसे प्रसूती काल में कैल्शियम की कमी से दुग्ध ज्वर हो जाती हैं। कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम, क्लोरीन, गंधक, मैग्निशियम, मैंगनीज, लोहा. तांबा, जस्ता, कोबाल्ट, आयोडीन, सेलेनियम इत्यादि शरीर के लिए आवश्यक प्रमुख लवण है। दूध उत्पादन की अवस्था में खनिज लवण दूध में काफी मात्रा में सावित होते हैं जिससे गाय या भैस को कैल्शियम तथा फास्फोरस की अधिक आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता को चारे के द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता इसलिए खनिज लवणों को अलग से पशु आहार के साथ खिलाना आवश्यक हो जाता है।
1-) कैल्शियम-यह हड्डियों और दांतो की रचना करने के साथ साथ तंत्रिका आवेगो के संचरण, मांसपेशियो के संकुचन, कई एंजाइम प्रणालियों की गतिविधि के लिए तथा रक्त का थक्का जमाने का काम भी करता है इसकी कमी से रिकेट्स, दुग्ध ज्वर जैसी बीमारिया हो जाती है । हरी पत्तेदार फसलें, विशेषकर फलियां, और चुकंदर का गूदा इसके अच्छे स्रोत हैं।
2-)फॉस्फोरस - शरीर में फॉस्फोरस उर्जा प्रदान करने वाले कोशिकाओं का महत्वपूर्ण घटक होता है। यह कैल्शियम तथा विटामिन डी के साथ मिलकर हड्डियों के निर्माण में सहायता करता है । इसकी कमी से पाइका नामक बीमारी हो जाती है तथा पशुओ में बांझपन भी आ सकता है। पशुओ में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस के अनुपात का बहुत महत्व है। इसका अनुपात 11 से 21 सबसे आदर्श माना जाता है। अनाज और मछली से बने उत्पाद फॉस्फोरस के अच्छे स्रोत हैं ।
3-) सोडियम-यह बहुकोशिकीय द्रव का मुख्य संघटक हैं। यह खनिज साधारण नमक में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाये रखने और तंत्रिका आवेग संवहन में सोडियम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मेगनेशियम- गेहूं की भूसी, कपास सीड केक और अलसी का केक, मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं । यह हड्डियो की संरचना और तंत्रिका व पेशियों की क्रियाशीलता के लिए जरुरी है । इसकी कमी से टिटेनी नामक बीमारी हो जाती है।
4-) लौह- यह फलीदार पौधों, बीज कोट वं हरी पतेदार सामग्री में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । यह हीमोग्लोबिन तथा मायोग्लाबिन में पाया जाता हैं, जो ऊत्तकों में ऑक्सीजन पहुँचाने का कार्य करता है । इसकी कमी से रक्तालपता हो जाती है।
5-) क्लोराइड- यह बहि- कोशिकीय द्रव का मुख्य आयन होता है। यह भी साधारण नमक का महत्वपूर्ण घटक होता है। शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन, परासरण दाब बनाये रखने और तंत्रिका आवेग संवहन में इसकी की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।
6-) पोटेशियम -यह अंतः कोशिकीय द्रव का मुख्य घटक हैं। माँस पेशियों के संकुचन व तंत्रिका आवेशों के संचार के लिए आवश्यक हैं। इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रोलाइट संतुलन के लिए आवश्यक है।
7-) ताम्बा -बालों और ऊन के रंग के लिए तांबा आवश्यक अवयव है। इसकी कमी से एनीमिया, वृद्धि में कमी . हड्डियों के विकार, दस्त और बांझपन आदि हो जाते है बीज और बीजोत्पाद आमतौर पर तांबे के अच्छे स्रोत होते हैं ।
8-) आयोडीन-समुद्री शैवाल में आयोडीन की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। यह थायरोक्सिन हॉर्मोन के संश्लेषण के लिए जरुरी होता है, जो कोशिकीय श्वसन के लिए आवश्यक है इसकी कमी से गलगण्ड नामक रोग हो जाता है। इस रोग के लक्षण ज्यादा गोभी, सोयाबीन मटर यामूंगफली के सेवन से भी दिखाई दे सकते है।
9-) सेलीनीयम- यह एंटीऑक्सीडेंट की तरह कार्य करता है एवं कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली को टूटने से बचाता है।
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