रेगिस्तान के जहाज ऊँटों का संरक्षण

 

रेगिस्तान के जहाज ऊँटों का संरक्षण

              

 

SHIP OF DESERT
 

   

ऊँट रेगिस्तान की पारिस्थतिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है। अपनी अनूठी जैव-भौतिकीय विशेषताओं के कारण यह शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों की विषमताओं में जीवनयापन की अनुकूलता का प्रतीक बन गया है। रेगिस्तान के जहाज के नाम से प्रसिद्ध इस पशु ने परिवहन एवं भारवाहन के क्षेत्र में अपरिहार्यता दर्शाते हुए अप पहचान बनाई है परंतु इसके अतिरिक्त भी ऊँट की बहुत सी पयोगिताएँ हैं जो निरन्तर सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों से भावित हो रही है ।

 

ऊँट सामान्य रूप से राजस्थान, गुजरात एवं हरियाणा में पाये जाते है तथा इनकी कुछ संख्या उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश व पंजाब में भी मिलती है। 2012 की पशु गणना के अनुसार देश के लगभग 81 प्रतिशत ऊँट सिर्फ राजस्थान राज्य में मिलते है। परन्तु उपयुक्त प्रबन्धन व संरक्षण पद्धति के अभाव में इनकी संख्या लगातार घट जो कि चिंता का विषय है।

 

2012 में आयोजित नवीनतम पशुधन जनगणना के अंतिम आकड़ों के अनुसार ऊँटों की आबादी में पिछली जनगणना की तुलना में 22.48% की कमी आई है। 2012 में देश में ऊँटों की कुल संख्या 0.4 मिलियन है, जिसमें से 81.37% राजस्थान में है। व्यावहारिक रूप से ऊँट अक्सर राजस्थान का प्रतीक माना जाता रहा है परन्तु उपयुक्त प्रबन्धन संरक्षण पद्धति के अभाव में इनकी संख्या लगातार घट रही है।


 

 

 

ऊंट की राजस्थान में सार्थकता :-

ऊँट चराई का रेगिस्तान की वनस्पति पर बहुत कम हानिकारक प्रभाव पड़ता है और यह भूमि को बंजर होने से भी रोकता है। ऊँटों के झुंड भेड़ की तरह चराई के लिए एक क्षेत्र में एकत्रित नहीं होते है जिससे उस क्षेत्र की वनस्पति चराई के कारण नष्ट नहीं होती है।

  •   सूखे से  निपटने के लिए- राजस्थान एक सूखा प्रभावति क्षेत्र है। ऊँट स्थानीय वनस्पति पर जीवित रह सकते हैं जो कि शुष्क क्षेत्रों में पायी जाती है और बिना सिंचाई के बढ़ती है।

  गरीब लोगों के लिए आजीविका-  इसमें शहरों में निर्माण सामग्री के परिवहन के द्वारा जीविकोपार्जन करने वाले ऊँट गाड़ी मालिक शामिल है। ऊँट      उन गरीब किसानों के लिए भी लाभप्रद है, जो कि खेती के कार्यो के लिए ट्रैक्टर का इस्तेमाल नहीं कर सकते है । 

 

 

CAMEL MILK
 

 





 ऊँट का दूध-एकनया आर्थिक अवसर :-

ऊँट का दूध केवल स्वास्थ्य एवं स्वाद की दृष्टि से ही उत्तम नहीं है बल्कि यह विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता भी रखता है ! इसमें ऐसे तत्व पाये जाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाते हैं तथा भारत और मध्य एशिया में इसका टी.बी. जैसे रोग के इलाज के लिए पारम्परिक रूप से प्रयोग किया जाता है। इसमें इन्सुलिन जैसा एक तत्व पाया जाता है जो कि रक्त में शर्करा का स्तर कम करता है। इसलिए चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को इसका सेवन बताते है। ऊँट के दूध की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यह सामान्य वातावरण में भी कई दिन तक खराब नहीं होता तथा कई दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है, दुबई में हुए एक अनुसंधान के अनुसार 72 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया गया दूध 10 दिन तक खराब नहीं होता तथा ताजा बना रहता है ।

 

  •      पर्यावरण संरक्षण :- ऊँट गाड़ी को पुराने समय का साधन समझने के बजाय इसे राजस्थान के ट्रेडमार्क के रूप में विकसित करना चाहिए, चूंकि यह पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा का स्त्रोत है।

 

  •  पहचान :- शब्द 'राजस्थान' व्यावहारिक रूप से लोगों के मन में ऊँटों की छवि लाने में पर्याप्त है। ऊँट का मतलब रेगिस्तान, सूर्यास्त, पगड़ी और मूंछो वाले पुरूषों से जोड़ा जाता रहा है और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन विभाग सबसे अधिक बार इसका इस्तेमाल करता है।

 

संस्कृति और स्वदेशी ज्ञान : राजस्थान में राइका जाति के लोगों का राजस्थान की जैव-विविधता में एक अनूठा स्थान है। ये परंपरागत रूप से ऊँट प्रजनक रहे है। पर्यावरण संरक्षण ज्ञान इनको विरासत में मिला है।

 

 

 

 


 ऊँट की आबादी में गिरावट के कारण:

 

  •   चराई संसाधनों के निरंतर कमी- ऊँट की आबादी में गिरावट के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण चारागाह भूमि का नष्ट होना है। चराई संसाधनों के विलुप्त होने के कारण बहुघटकीय हैं और इसमें इन्दिरा गांधी नहर के कारण सिंचाई वाले कृषि क्षेत्र का विस्तार भी शामिल है। हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में ट्यूबवेल की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है जिस के कारण भी निजी भूमि में पशुओं के चारागाह सीमित हो गये है।

 

  •  निरंतर सूखा - कम वर्षा के कारण राजस्थान में पड़ने वाले लगातार सूखे ने पशुओं के लिए चारा और फसल उत्पादन को प्रभावित किया है। ऊँटों के लिए चारा डिपो का कोई संगठित कार्यक्रम नहीं है। गंभीर रूप से प्रभावित गांव में, किसान शहरों में लकड़ी बेचकर पैसा कमाने के लिए वहाँ उपलब्ध प्राकृतिक झाड़ियों और पेडों में कटौती करने के लिए मजबूर हो रहे है, जिससे भी ऊँटों के प्राकृतिक चारागृह नष्ट हो रहे है।

 

  •   वध के लिए ऊँट के अवैध परिवहन- ऊँटों को अन्य राज्यों और पड़ोसी देशों में वध के लिए ले जाया जाता है, अवैध परिवहन को रोकने के लिए पशुपालन और कृषि राज्य और केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों द्वारा हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है।

 

  •   ऊँ के लिए संगठित चराई नीति का अभाव- ऊँट गर्म रेगिस्तान पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक हैं, फिर भी सरकार की ओर से सूखे के दौरान निर्दिष्ट अवधि के लिए वन क्षेत्रों में ऊँटों की चराई की अनुमति के लिए कोई संगठित नीति नहीं है।

 

  •   युवाओं में रूचि की कमी - ऊँट मालिक परिवारों के युवा सदस्यों में शिक्षा के स्तर में हुई वृद्धि और तेजी से शहरीकरण के कारण ऊँटों के प्रति रूचि और लगाव में कमी आयी है।

 

 


 


 


 रेगिस्तान के जहाज को बचाये रखने के उपाय:

 

  •   ऊँट को कृषक के लिए अधिक लाभकारी बनाना |- ऊँटों को बहुउपयोगी पशु के रूप में प्रतिस्थापित करने के लिए इनकी दुग्ध उत्पादन, भार ढोने, कार्य करने की क्षमता से लोगों को अवगत कराने की आवश्यकता है।
  •   ऊँटों के बच्चो की गर्भावस्था और जन्मों परान्त मृत्यु दर को कम करने के लिए समुचित रोकथाम अति आवश्यक है।
  •  ऊँट के दूध के विभिन्न उत्पादों का उपयोग प्रचलित करना चाहिए जिससे इसको लोग पसन्द करें इसकी मांग बढे इससे ऊँट का डेयरी पशुओं की भांति प्रबंधन एवं संरक्षण संभव होगा।

 

  •  चराई क्षेत्रों की हानि के कारण ऊँट प्रजनकों को गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को इस दिशा में कोई महत्वपूर्ण उपाय खोजने चाहिए।

 

  • डेयरी सहकारी समितियों के तर्ज पर ऊँट के दूध, बाल और चमड़े के लिए भी बाजार विकसित किया जाना चाहिए।


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


1 comment:

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