गर्मी और उमस में तेजी से फैलता है गलघोंटू (HEMORRHAGIC SEPTICEMIA) और लंगड़ा बुखार(BLACK QUARTER)
जलाई --अगस्त का महीना बारिश का महीना है । खेती-बाड़ी व बागवानी के लिए यह बारिश बहुत फायदेमंद है। इस मौसम में पशुओं के लिए हरा चारा भी में उग जाता है परन्तु साथ ही बारिश के मौसम में वातावरण में उमस भी काफी बढ़ जाती है। अधिक गर्मी व उमस के कारण तथा तापमान में अधिक उतार-चढ़ाव होने के कारण पशुओं के कुछ संक्रामक रोगों के जीवाणुओं को उचित वातावरण मिल जाता है तथा यह पशु शरीर में प्रवेश कर रोग पैदा कर सकते है। बारिश के मौसम में अधिक गर्मी व उमस के कारण पशुओं में गलघोंटू और लंगड़ा बुखार होने की संभावना बढ़ जाती है।
- गलघोंटू रोग( इस रोग से भैंस, गाय भेड़, बकरी, ऊंट, और सूअर आदि प्रभावित होते है। परन्तु भैंसों में गलघोंटू रोग का प्रकोप ज्यादा होता है। इस रोग का प्रमुख कारण पार्च्यूरेला मल्टोसिडा नामक जीवाणु है । इस रोग में पशु को तेज बुखार हो जाता है, यह बुखार 104 डिग्री से 107 डिग्री फेरेनहाइट तक हो सकता है। इस रोग में पशु को तेज बुखार हो जाता है रोगी पशु का गला सूज जाता है। पशु को सांस लेने में परेशानी होती है। और पशु बहुत बैचेन हो जाता है। श्वास के साथ गर्र -गर्र की आवाज करता है। पशु के मुंह से लार टपकती है। पशु घास खाना व जुगाली करना बंद कर देता है। यह रोग बहुत खतरनाक है यदि समय पर पशु का इलाज न किया जाये तो इस रोग में मृत्यु दर बहुत अधिक है।
- लंगड़ा बुखार (BLACK QUARTER)- यह रोग अधिकतर गायों में होता है तथा क्लोस्ट्रीडियम नामक जीवाणु इसका मुख्य कारण है। पशु को तेज बुखार हो जाता है तथा यह बुखार 104- 106 डिग्री फेरेनहाइट तक हो सकता है। इस रोग में iqVBksa पर दर्द भरी सूजन, चलने में परेशानी और कुछ समय पश्चात पशु जमीन पर बैठ जाता है। सूजन वाला हिस्सा कुछ काला सा नजर आता है, और उसके दबाने से चरड़-चरड़ की आवाज आती है। पशु खाना-पीना बंद कर देता है। कुछ समय बाद सूजन एवं पशु को दर्द नहीं होता है, खाल भी कुछ समय बाद सूखी हो जाती है और तिड़कने लगती है । पशु की 48 घण्टें के अन्दर ही मृत्यु हो जाती हैं।
- गलघोंटू व लगंड़ा बुखार रोग तेजी से फैलता है एवं एक साथ कई पशु इससे ग्रसित होते हैं अतः सावधानी से ही इस रोग की रोकथाम सम्भव है । चूंकि यह दोनो रोग बरसात के महीनें में होते है अतः बरसात से पूर्व मई-जून के महीनें में इसका रोग-प्रतिरोधक टीकाकरण जरूर करवाना चाहिए।
रोग से बचाव एवं उपचार :-
- चार माह से बड़े सभी पशुओं को प्रतिवर्ष मानसून पूर्व टीका लगवायें ।
- रोगी पशु को अन्य पशुओं से अलग बांध कर चारा-पानी की व्यवस्था करें व रोगी पशु का झूंठा चारा पानी अन्य पशुओं को न दें। *
- रोगी पशु को अलग कर पशुचिकित्सक की सलाह से इलाज करावें। *
- बाड़े के फर्श को चूने के पानी से अच्छी तरह साफ करें व फिनाइल औषधि का छिड़काव करें। *
- रोग से मरने वाले पशु को घसीट कर न ले जायें (गाड़ी में डाल कर ले जाये) व गांव के बाहर नदी, नाले, चारागाह आदि से दूर किसी जगह पर चूने नमक के साथ गड्डे में दफना दें।
- बीमार पशु/बीमारी से मृत पशु के खून/गले की सूजन के सेम्पल की प्रयोगशाला जांच से प्रभावी औषधि का पता लगाया जा सकता है।
hi guys ,this blog is on animal diseases i.e Hemorrhagic septicemia and black quarter .
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